आखिर कहां छुपे हैं भगवानों के ठेकेदार?

आज पूरे विश्व की सरकारों ने कोरोना महामारी के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है।भारत में यह महामारी अपना तांडव दिखाएं इससे पहले ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभूतपूर्व मुहिम छेड़ दी है।बहुत कम ही देश है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा साहस शुरुआती समय में दिखाया है।देश की जनता को सुरक्षित रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नुकसान को न देखते हुए देश में लॉकडाउन घोषित कर दिया।यह देश के प्रधानमंत्री की मजबूरी थी कि एकाएक उनको इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा। लॉकडाउन करने का मुख्य उद्देश्य समस्त जनता को जहां है वहीं स्थिर रखना था जिससे यह बीमारी अपने तीसरे चरण में न पहुंच पाएं।पर देश की स्थिति इससे जुदा है।इक्कीस दिनों के लॉकडाउन से सरकारी और प्राइवेट संस्थान बंद हैं।जिसके चलते लाखों लोग अपने घर जा रहे हैं।गरीब और दिहाड़ी मजदूरी करने वाले वर्ग का मानना है कि अगर वो इतनी समयावधि तक महानगर में रहते हैं तो भुखमरी के हालात हो सकते हैं। इसलिए इस वर्ग का मानना है कि अगर हम घर पहुंच गए तो कम से कम जीवित तो रह लेंगे।यही सोचके यह वर्ग अब घरों को जाने को मजबूर हैं।पूरे देश में लॉकडाउन के चलते बसें, ट्रेन और हवाई सेवा सब रद्द हैं।ऐसे में घर को निकले लोग भूखे-प्यासे अपने परिवार के छोटे-छोटे बच्चों के साथ कई सौ किलोमीटर का सफर पैदल करने के लिए मजबूर है।कई इलाकों में पुलिस व संस्थाएं मददगार साबित हो रही है वो भूखे लोगों के लिए भोजन,पानी तो उपलब्ध करा रहे हैं।पर इससे आगे की मदद के लिए वो मजबूर हैं।पर सड़कों में हालात यह हैं कि ऐसा न हो कि कोरोना से ज्यादा लोग भुखमरी और ज्यादा तनाव लेने की वजह से मर जाएं।लगातार मीडिया में खबरें आने के बाद सरकार भी जागीं है और अपने-अपने स्तर से राहत कार्य करनें में जुटी हुई है।वर्तमान हालात में एक सवाल जो सबके मन में कौंध रहा है आपातकाल की संकट बेला में हमारी धार्मिक संस्थाएं कहां है। वो संस्थाएं जो अपने को भगवान का प्रतिनिधि कहती हैं। वो संस्थाएं तो मानवता की सेवा के लिए अपने अनुयायियों से हर दिन करोड़ो रुपये चंदे के रूप में लेती हैं।लोगों को मोक्ष का संदेश देने वाले धर्मगुरु आज कहां है।मृत्यु एक अटल सत्य है का संदेश देने वाले धर्मगुरु आखिरअपने बिलों में किस डर से छिपे हुए हैं?आज जब मानवता कराह रही उसे धार्मिक संस्थाओं की सबसे अधिक आवश्यकता थी उस वक्त ये संस्थाएं क्यों मौन चुप्पी थामे हुए हैं।मानवता की सेवा के नाम पर इस आश्रमों व ट्रस्टों ने सैकड़ों एकड़ की जमीन पर कब्जा करके आश्रम बना रखे हैं।आश्रम बनाने का मुख्य तर्क यही देते हैं कि यहां से मानवता की सेवा की जाएगी।पर आज जब वहीं मानवता अपनी पीड़ा लिए पुकार रही है तब इन दिव्य व भव्य आश्रमों के दरवाजें पीड़ितों के लिए आखिर क्यों बंद हैं।लाखों करोड़ों वालेंटियर का दावा करने वाली संस्थाएं आज मानवता की सेवा से मुंह क्यों मोड़ रही है? क्योंकि मानवता की सेवा में उनका खजाना कहीं खाली न हो जाए क्या इसलिए वो सामने नहीं आना चाहती? या फिर इस वक्त मानवता की सेवा के लिए उनकी तिजोरियां न भर पाएंगी इसलिए इन संस्थाओं के सर्वेसर्वा अपने आलीशान बिलों में छुपे हुए हैं।याद करिए वो वक्त जब किसी संस्था का बड़ा धर्मगुरु या प्रमुख आयोजन स्थल पर आता है तो उसके साथ गाड़ियों के कितने काफिले शामिल होते हैं।आज इन प्रमुखों के काफिले में शामिल होने वाली गाड़ियों के पहिए क्यों जाम हैं?माना कि परिस्थितियों को देखते हुए सरकार ने कड़े प्रतिबंध लगाएं हैं। पर सरकार ने एक दायरे में रहकर मानवता की सेवा के लिए मना तो नहीं किया है।कई स्थानीय स्तर की संस्थाएं अपने स्तर से जुटी हुई है।वहीं सड़कों पर वर्दी के रूप में आपको फरिश्ते दिख जाएंगे।जो अपने स्तर से जितना संभव हो रहा मदद कर रहे हैं।कुछ ऐसे भी फरिश्ते हैं जो शान को पीछे छोड़ते हुए पहले परिवार सहित घर में खाना बनाते हैं फिर सुरक्षा के मानकों का ध्यान रखते हुए लोगों के लिए व्यवस्था करते हैं।पर अभी तक किसी भी आश्रम के दरवाजे लोगों के लिए खुले नहीं दिख रहे हैं।कहीं यह महामारी उनके दिव्य आश्रमों में न घुस जाए इस भय से यह भगवान के प्रतिनिधि अपने यहां के दरवाजे सभी के लिए बंद कर दिए हैं।आश्रमों के धर्मगुरु जो मानवसेवा का ज्ञान देते हुए नजर आते थे आखिर अब उनकी मानव सेवा कहां गई। ये एक बड़ा सवाल भी है और सोचने का विषय भी?