आखिर कौन है पहाड़ के 20 वर्षीय युवक राहुल की मौत का जिम्मेदार

रुड़की से विकासनगर तक 100 किमी पैदल चला था राहुल। गर्मी में पैदल चलने से डिहाइड्रेशन और मल्टी आर्गन फेल हो गये थे। लेकिन फिर भी वह चलता रहा इस आस में कि वह अपने घर पहुंच जाएगा। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। वाह री त्रिवेंद्र सरकार जो इतनी निष्ठुर हो गई जो लोगों के दर्द भी नहीं देख रही। सरकारी इतंजाम धरे के धरे रह गए लेकिन राहुल को बचा नहीं पाए।  

उत्तरकाशी जिला अस्पताल से 20 साल के राहुल जोशी को दून मेडिकल कालेज में 26 मई को जब दाखिल कराया गया तो उसकी स्थिति बहुत बिगड़ चुकी थी। डाक्टरों ने प्रयास किये लेकिन 27 मई को राहुल ने दम तोड़ दिया। राहुल जोशी पुरोला का रहने वाला था और नौकरी की तलाश में हैदराबाद चला गया था। वहां एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रहा था। नौकरी छूटी, लाॅकडाउन में फंस गया, लेकिन बचत जीरो। 20 साल का राहुल बचाता भी क्या? महानगरों में छोटी सी तनख्वाह में क्या बचता है? जब लाकडाउन चार की घोषणा हुई तो उसने सोच लिया कि अब यहां नहीं लौटना। 14 मई को तीन दोस्तों के साथ उसने हैदराबाद से एक ट्रक चालक से लिफ्ट मांगी।

ट्रक चालक ने तीनों को रुड़की बार्डर पर छोड़ दिया। टीओआई की खबर के अनुसार इसके बाद राहुल तीन दिन तक पैदल चला और 100 किलोमीटर की दूरी तय विकास नगर पहुंचा। इस बीच उसके परिजनों ने स्कूटी की व्यवस्था कर उसे पुरोला के क्वारंटीन सेंटर तक पहुंचाया। तेज गर्मी और पैदल चलने से वह डिहाइड्रेशन का शिकार हो गया। 20 मई को पहले उसे पुरोला के सीएचसी में दाखिल कराया गया, जब हालत बिगड़ने लगी तो उत्तरकाशी अस्पताल रेफर किया गया। इसके बाद दून मेडिकल कालेज में राहुल की जीवन लीला का दुखद अंत हो गया।

दरअसल राहुल जोशी की मौत हमारे पहाड़ की कहानी बहुत कुछ कहती है। हम राज्य गठन के 20 साल भी बेवजह जान गंवा रहे हैं। आज भी पहाड़ की जवानी और पानी दोनों ही पहाड़ के काम नहीं आते। यह कैसा श्राप है हमें? क्यों हमने ये राज्य बनाया? क्यों शहीदों ने बलिदान दिये? क्यों पहाड़ की हजारों मातृशक्ति सड़कों पर उतरी? दिल धिक्कारता है कि जिस राज्य के लिए इतना संघर्ष, त्याग और बलिदान दिये, उसे हासिल करने के बाद भी गांव की पगड़डियों से जवानी मैदानों की ओर बह रही है। आखिर कब तक? और क्यों? आखिर कौन है राहुल की मौत का जिम्मेदार?