आवाज़ विशेष :जानिए कुमायूं कोकिला कबूतरी देवी के बारे में जिनका नाती पवनदीप राजन मचा रहा है इंडियन आईडल में धमाल

आज पूरा हिंदुस्तान पवनदीप राजन को अच्छी तरह जानता है इंडियन आईडियल के मंच पर धमाल मचाने वाले पवनदीप राजन उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोक गायिका कबूतरी देवी के नाती है आज हम पवनदीप के बारे में नही बल्कि उनकी नानी के बारे में बताएंगे जिनकी छत्र छाया में रहकर ही पवनदीप आज उत्तराखंड का नाम रौशन कर रहे हैं।

उत्तराखंड की संस्कृति, परंपरा यहां के लोक गीतों को अपनी मधुर आवाज से जनमानस तक पहुंचाने वाली कबूतरी देवी का जन्म 18 जनवरी 1945 को चंपावत जिले के लेटी गांव में हुआ था ।पहाड़ों की कोयल,लोक चितेरी कबूतरी देवी के घर मे संगीत का माहौल पीढ़ियों से आज भी चला आ रहा है।कबूतरी देवी ने अपनी संगीत की शिक्षा घर से ही शुरू की थी उनके पिता देवी राम और माँ देवकी देवी से ही उन्होंने संगीत की शिक्षा गृहण की।उत्तराखंड के लोक गीतों के अलावा कबूतरी देवी तीन ताल,झप,ताल,ठुमरी,और रागों पर आधारित कई गीतों को ऐसे गाया करती थी मानो स्वयं सरस्वती उनके कंठ में बैठ गयी हो।उन्होंने उत्तराखंड के लोक गीतों को आकाशवाणी और प्रतिष्ठित मंचो के माध्यम से प्रसारित किया,उनका विवाह मात्र 14 वर्ष की आयु में पिथौरागढ़ के क्वितड निवासी दीवानी राम से हो गया था,दीवानी राम भी एक लोक गायक थे साथ ही स्थानीय नेता भी इसीलिए उनकी पहचान भी खूब थी उन्होंने जब कबूतरी देवी के हुनर को देखा तब उन्होंने ठान लिया कि अपनी पत्नी की प्रतिभा को  पहाड़ो के कोने कोने तक पहुंचाना है,तभी दीवानी राम को कहीं से पता चला कि लखनऊ आकाशवाणी केंद्र में स्वर परीक्षा होने वाली है उन्होंने तत्काल अपनी पत्नी कबूतरी देवी को इस बात की जानकारी दी,और उन्हें लेकर लखनऊ पहुंच गए,और स्वर परीक्षा दिलवाई। कबूतरी देवी पहली ऐसी गायिका थी जिन्होंने उसी दिन ऑडिशन दिया और उसी दिन उन्हें बी हाईं ग्रेड मिला और उसी दिन उनके लोक गीतों की रिकॉर्डिंग भी आकाशवाणी में की गई,फिर क्या था उनकी कामयाबी की शुरुआत हो गयी,जगह जगह उनके प्रोग्राम होने लगे।सत्तर के दशक में कबूतरी देवी ने रेडियो के लिए खूब गाया,आकाशवाणी के लिए उन्होंने सौ से भी ज़्यादा गाने गाए।कुमाऊं कोकिला के नाम से प्रसिद्ध कबूतरी देवी को राष्ट्रपति पुरुस्कार से भी सम्मानित किया गया था।


कबूतरी देवी एक भारतीय उत्तराखंडी लोकगायिका थीं। जिन्होंने उत्तराखंड के लोक गीतों को आकाशवाणी और प्रतिष्ठित मंचों के माध्यम से प्रसारित किया। सत्तर के दशक में उन्होंने रेडियो के लिये खूब गाने गाए,आकाशवाणी के लिए भी उन्होंने सौ से ज़्यादा गाने गाए,कुमाऊं कोकिला के नाम से प्रसिद्ध कबूतरी देवी को राष्ट्रपति पुरुस्कार से भी सम्मानित किया गया था।कबूतरी देवी संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिये गाने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने पर्वतीय लोक संगीत को अंतरराष्ट्रीय मंच दिलाया। 2016 में 17वें राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर उत्तराखण्ड सरकार ने उन्हें लोकगायन के क्षेत्र में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया।अपने सुरों से सबका मन मोहने वाली वाली स्वर लहरिया कबूतरी देवी तब अंदर से बिल्कुल टूट गयी जब 1984 में उनके पति का देहांत हुआ,पहाड़ो की कोयल शांत हो गयी उनकी आवाज़ कही खो गयी,लेकिन उनका नाम पहाड़ो में गूंजता रहा, कुछ रंगकर्मी बताते है कि हेमराज बिष्ट डॉ उमा भट्ट और नैनीताल के युगमंच निर्देशक ज़हूर आलम के अथक प्रयासों से कबूतरी देवी को सदमे से बाहर निकाला गया और जन कवि गिर्दा ने भी उनकी मदद को हाथ बढ़ाये उसके बाद एक बार फिर पहाड़ो में कबूतरी देवी की खनकती आवाज़ बिखरने लगी।आज भी उनके गाये गीत अमर है।जो लोग उत्तराखंड के है वो कबूतरी देवी द्वारा गाया गीत ठंडो रे ठंडो पानी सुनते ही झूमने लगते है,बड़े बड़े मंच पर आज भी कबूतरी देवी प्रसिद्ध गीत गाये जाते है चाहे वो पनी ज्यो ज्यो हो या पहाड़े की सरस्वती या फिर यो पापी कलेजी काटी खानी हो कबूतरी देवी के गीत आज भी अमर है ,अमर गीतों के साथ कबूतरी देवी 7 जुलाई 2018 में अस्थमा व हार्ट की दिक्कत के चलते हमेशा हमेशा के लिए खामोश हो गयी लेकिन आज भी उत्तराखंड के इतिहास में वो अमर है उनके नाती पवनदीप राजन उन्ही के पद चिन्हों पर चलते हुए पूरे देश मे नाम रौशन कर रहे हैं ।