कृषि कानून बिल के पीछे की सच्चाई - बाकी सब बहाना है भारतीय खाद्य निगम निशाना है

किसान आंदोलन को अब तक 35 दिन दिन हो चुके है और इन 35 दिनों में 41 किसानों की आंदोलन के चलते मौत हो चुकी है और अभी तक सरकार तीनों कृषि कानूनों को लेकर अपने फैसले से अडिग है। सरकार का कहना है कि नया कृषि विधेयक किसानों के पक्ष में है और कुछ लोग इसे राजनैतिक रूप दे कर किसानों के मन में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे है ।दरअसल जबसे बीजेपी सरकार ने संसद में ध्वनि मत से कृषि विधेयक 2020 पास कराया है तब से ही देश के विभिन्न स्थानो में किसानों के द्वारा विरोध प्रदर्शन होने लगा था जो आज एक बड़ा आंदोलन बनकर सामने आया है ।

नए तीनो कृषि विधेयक के अनुसार जो सुधार पैकेज सरकार किसानों को देने की बात कह रही है वो सबसे पहले आप जान लीजिए कि क्या है ? 

1:-ये कानून अत्यावश्यक वस्तु अधिनियम का कानून है, इस कानून मे केंद्र सरकार ने संशोधन किया है ताकि खाद्य-उत्पादों पर लागू संग्रहण की मौजूदा बाध्यताओं को हटाया जा सके।

2:- केंद्र सरकार ने एक नया कानून (द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रोमोशन एंड फेसिलिएशन) अध्यादेश, 2020) एफपीटीसी नाम से बनाया है जिसका मकसद कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) के एकाधिकार को खत्म करना और हर किसी को कृषि-उत्पाद खरीदने-बेचने की अनुमति देना है ।

3:-ये एक नया कानून एफएपीएएफएस (फार्मर(एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस अश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज आर्डिनेंस,2020) बनाया गया है, इस कानून के जरिये अनुबंध आधारित खेती को वैधानिकता प्रदान की गई है ताकि बड़े व्यवसायी और कंपनियां अनुबंध के जरिये खेती-बाड़ी के विशाल भू-भाग पर ठेका आधारित खेती कर सकें।


आवाज़ 24X7 इंडिया के विश्लेषण के अनुसार नए कृषि विधेयक 2020 अगर लागू हो गया तो शायद भारतीय खाद्य निगम ( FCI )  जैसी संस्था खत्म हो जाएगी जिसे देश में किसानो और  गरीबों के हितों को सुरक्षित रखने और देश के प्रत्येक नागरिक को खाद्य सुरक्षा देने के लिए बनाया गया था एफसीआई यानि भारतीय खाद्य निगम के खत्म होते ही ऐपीएमसी (कृषि उपज विपरण समिति) और एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का कोई आधार नहीं रह जाएगा ।

एफसीआई जिसका जन्म 1965 में हुआ था ।1947 में देश तो आजाद हो गया था लेकिन गरीबी ,भुखमरी ,बेरोजगारी जैसी समस्याए एक चुनौती बनकर देश के सामने खड़ी थी जिसे देखते हुए सरकार द्वारा खाद्य विभाग नीति बनाने पर विचार किया गया ।

1943-44 के दौरान बंगाल ( वर्तमान बांग्लादेश, भारत का पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा )  में एक भयानक अकाल पड़ा था जिसमें लगभग 30 लाख लोगों ने भूख से तड़पकर अपनी जान गंवाई थी। जिसको देखते हुए भारत सरकार ने खाद्य विभाग की स्थापना की ,उस वक़्त के तत्कालीन  प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निर्देशानुसार 1965 में भारतीय खाद्य निगम अस्तित्व में आया और कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्यों को लेकर एक खाद्य नीति बनाई गयी ,इस खाद्य नीति के तहत किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करना ,निजी व्यापारियों द्वारा अंतर राज्य खाद्यान्न परिचालन में प्रतिबद्धता ,आवश्यकता के अनुसार खाद्यान्नों का आयात करना ,सांविधिक एवं अन्य नियंत्रण द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कायम रखना ,पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्नों का भंडारण करना ,खाद्यान्न पहुंचाने की व्यवस्था में कुछ हद तक लचीलापन करना आदि मुख्य थे ।

2014 के लोकसभा के चुनाव में NDA ने 336 सीटों के साथ अपनी जीत दर्ज़ की और  26 मई 2014 को देश के 15 वें प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने शपथ ली । जब देश में NDA की सरकार ने सत्ता संभाली तो एफ़सीआई 31753 करोड़ के घाटे में चल रही थी ,शायद सरकार की मंशा एफसीआई को बर्बाद कर देने की थी जो नए कृषि कानूनों से साफ झलकती है कि सरकार भारतीय खाद्य निगम ( FCI )  को खत्म कर देना चाहती है और भारतीय खाद्य निगम ( FCI ) की जगह निजी खिलाड़ियों को दे देना चाहती है। दरअसल ये कहानी 5 से 6 वर्ष पहले शुरू कर दी गयी थी  UPA के कार्यकाल के दौरान 1 अप्रैल 2014 को जो घाटा 31753 हज़ार करोड़ का था वो घटने की बजाय वर्ष प्रति वर्ष बढ़ता चला गया और 2019 में ये घाटा 2 लाख 42 हजार करोड़ को पार कर गया ,यानी सरकार ने अपने ही उपक्रम को जितना पैसा चाहिये उतना दिया नही, पर हां यह जरूर कहा कि आप आर बी आई से कर्ज ले सकते है  ,अब कर्जे के हिसाब से देखें तो 2013-14 में यानी मनमोहन सरकार मे कर्ज 91401 करोङ था , वही मोदी सरकार मे भी एफसीआई पर कर्ज लगातार बढ़ता गया ,2014 मे 1 लाख करोङ 16-17 में 1.32 लाख करोङ हुआ 2017-18 में fci पर कर्ज 1.92 लाख करोङ हो गया , 2018-19 में 2.65 लाख करोङ का कर्ज हुआ और  अंत मे 2019 में कुल मिला कर ये कर्ज 3.15 हजार करोङ तक हो गया,यानी एक तरफ एफसीआई का घाटा बढ़ा और दूसरी तरफ उस पर कर्जा भी बढ़ा। 

गौरतलब है कि आज एफसीआई का कर्ज भी भारत मे एन पी ए हो चुके कर्जो मे शामिल है। भारतीय खाद्य निगम ( FCI )  की वैबसाइट के अनुसार ....


https://fci.gov.in/finances.php?view=109


अब अगर भारतीय खाद्य निगम ( FCI ) को खाद्यान्न खरीदना है तो इस वर्ष लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ भारतीय खाद्य निगम ( FCI ) को और लेना होगा जो कुल मिलकर 4 लाख करोड़ का हो जाएगा जिसे सरकार दे नहीं पा रही या देना नहीं चाहती है इसलिए सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम ( essential commodities act ) मे बदलाव किया है ताकी भण्डारण और स्वामित्व जो भारतीय खाद्य निगम ( FCI ) करती थी वो अब निजी खिलाड़ी कर सके , नए कानून के आ जाने से  निजी खिलाड़ी भारतीय खाद्य निगम ( FCI )  की जगह ले लेंगे । अब नए आवश्यक वस्तु अधिनियम ( essential commodities act ) के अनुसार अब कोई भी निजी खिलाड़ी भंडारण कर सकता है इसका सीधा मतलब भारतीय खाद्य निगम ( FCI )  का काम खत्म होना है , चूंकि भारतीय खाद्य निगम ( FCI )  पहले से ही कर्ज़ में डूब चुका है। जब सरकार पैसा नहीं देगी तो भारतीय खाद्य निगम ( FCI )  क्या करेगा ? इस वजह से सरकार की ये दलील है कि इस कानून को लागू करना हमारी मजबूरी है जबकि इस मजबूरी को पैदा सरकार ने ही किया है अगर प्रत्येक वर्ष  भारतीय खाद्य निगम ( FCI ) जितने पैसे से अनाज खरीदती था अगर उसे उतना पैसा मिल जाता तो भारतीय खाद्य निगम ( FCI ) कभी भी घाटे में नहीं डूबता  ।

*कहीं ये सरकार की सोची सझी नीती का हिस्सा तो नही कि FCI को इतना डूबा दो कि ये कानून का इम्पलीमेन्टेसन आसान हो जाये* 

*जब सरकारी खरीद करने वाली संस्था ही नही होगी तो MSP लागू रहेगी के लिखित आश्वासन का क्या मतलब रह जायेगा* 

*सरकार का कहना है किसानों को इसका पैसा भारत की आम जनता की जेब से जाएगा जबकि भारतीय खाद्य निगम ( FCI )  भारत सरकार का ही अंग है  ।

अब आप खुद ही तय कीजिये कि सरकार का कृषि विधेयक कानून कितना सही है कितना गलत है।