कृषि सुधार विधेयक 2020 के जरिये क्या है मोदी सरकार की मंशा और किसानों के संघर्ष की सच्चाई ?
आज़ादी के बाद भारत मे अब
तक कई किसान
आंदोलन हुए है जिनमें भारत तेभागा आंदोलन,पाबना विद्रोह,
चम्पारण
का सत्याग्रह और बारदोली में अब तक के सबसे बड़े आंदोलन माने जाते है जो महात्मा
गांधी, वल्लभभाई
पटेल जैसे नेताओं के नेतृत्व में हुए, इतिहास बताता है किसानों के आंदोलन
विद्रोह की शुरुआत सन् 1859 से हुई थी, और अंग्रेजों की नीतियों पर सबसे ज्यादा
किसान प्रभावित हुए, इसलिए आजादी के पहले भी इन नीतियों ने किसान
आंदोलनों की नींव डाली थी। आज देश मे एक बार फिर कृषि विधेयक 2020 के विरोध में एक
और इमारत खड़ी हो रही है कड़ाके की ठंड में सड़कों में पानी की बौछार सहने वाले किसान
आज फिर अपने हक के लिए लड़ रहे हैं । कृषि विधेयक आखिर किसान आंदोलन कैसे बन गया
आइये इस मुद्दे पर एक पैनी नज़र डालते हैं।
केंद्र सरकार सितंबर 2020 में तीन नए
कृषि विधेयक लेकर आई जिस पर राष्ट्रपति ने भी मुहर लगा दी और कृषि विधेयक एक नए
कानून के रूप में देश भर में लागू हो गया। इस नए कानून से हमारे अन्नदाता नाराज़ हो
गए क्योंकि उनका मानना है कि इन तीनो नए कृषि विधेयकों से किसानों को नुकसान और
निजी खरीददारों और बड़े बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा यहाँ तक कि किसानों को
उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी न मिलने का डर सता रहा है,इसीलिए आंदोलन कर रहे किसान संगठन ने
केंद्र सरकार से इन तीनो कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की है और कहा है कि किसानों के साथ बातचीत कर नया कानून लाया
जाए जो वास्तव में किसानों के हित मे हो क्योंकि किसानों को संदेह है कि नए कानून
से अब कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और
इसका नुकसान किसानों को होगा, हालांकि केंद्र सरकार साफ कर चुकी है
कि किसी भी कीमत पर कृषि कानून को न तो वापस लिया जाएगा और न ही उसमें कोई फेरबदल
किया जाएगा।
किसानों की प्रमुख मांगें क्या है आइये
वो भी जान लेते है क्योंकि कृषि कानून आम जनता से ज़्यादा किसानों के लिए अति
महत्वपूर्ण है इसीलिए उनकी मांगों को जानना भी ज़रूरी है ताकि किसानों का पक्ष भी
मालूम हो ।
किसानों की मांग है कि तीनों कृषि
कानूनों को वापस लिया जाए क्योंकि ये किसानों के हित में नहीं है और कृषि के
निजीकरण को प्रोत्साहन देने वाले हैं, इनसे होल्डर्स और बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा
होगा ।
एक विधेयक के जरिए किसानों को लिखित
में आश्वासन दिया जाए कि एमएसपी और कन्वेंशनल फूड ग्रेन खरीद सिस्टम खत्म नहीं
होगा ।
किसान संगठन कृषि कानूनों के अलावा
बिजली बिल 2020 को लेकर भी विरोध कर रहे हैं । केंद्र सरकार के बिजली कानून 2003
की जगह लाए गए बिजली (संशोधित) बिल 2020 का विरोध किया जा रहा है । आंदोलनकारी
किसानों का आरोप है कि इस बिल के जरिए बिजली वितरण प्रणाली का निजीकरण किया जा रहा
है, इस
बिल से किसानों को सब्सिडी पर या फ्री बिजली सप्लाई की सुविधा खत्म हो जाएगी।
चौथी मांग एक प्रावधान को लेकर है,
जिसके
तहत खेती का अवशेष जलाने पर किसान को 5 साल की जेल और 1 करोड़ रुपये तक का
जुर्माना हो सकता है, आंदोलनकारी किसान यह भी चाहते हैं कि पंजाब
में पराली जलाने के चार्ज लगाकर गिरफ्तार किए गए किसानों को छोड़ा जाए।
मोदी
सरकार
की दलील है कि कृषि विधेयक से किसान अब कहीं भी अपना
अनाज बेच सकता है इस विधेयक के अंतर्गत किसानों को मंडी शुल्क नही लगेगा , कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग होगी, एपीएमसी मॉडल खत्म होगा,
बिचौलियों से छुटकारा मिलेगा, ये वही सारी छूट है जो ई नाम योजना (नेशनल
एग्रीकल्चर मार्केट) मे भी दी गयी थी जिसे सरकार पहले ही फ्लैगशिप योजना के नाम पर लागू कर चुकी है जिसके फिर इस नए कृषि विधेयक में इस बात पर ज़ोर क्यो
दिया जा रहा है ? क्या फ्लैगशिप योजना नेशनल
एग्रीकल्चर मार्केट (ई नाम) फेल हो गयी जो नया कृषि विधेयक लाया
गया ? एक
रिपोर्ट के मुताबिक देश के 21 राज्य और दो केंद्र शासित राज्य की तकरीबन एक हज़ार
मण्डिया नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट योजना से जुड़ी थी जिसमे 1.66 करोड़
किसान प्रत्यक्ष रूप से जुड़े है हालांकि इस योजना के लागू होने के बाद ये आंकड़े
बेहद कम है, गौर करने वाली बात ये है कि भारत सरकार ने ई-नाम
स्कीम नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट से 1.28 ट्रेडर्स और 70934
कमीशन एजेंट को रजिस्टर किया है और सरकार अब कह रही है कि नए कृषि विधेयक में
कमीशन एजेंट से किसानों को छुटकारा मिलेगा ये कैसे सम्भव होगा ?
ऐसा
प्रतीत होता है कि सरकार एक म्यान में दो तलवारें रखने की बात कह रही है।
नए तीनो कृषि विधेयक जो सुधार पैकेज
सरकार किसानों को देने की बात कह रही है वो भी आप जान लीजिए।
1:-ये कानून अत्यावश्यक वस्तु अधिनियम
का कानून है, इस कानून मे केंद्र सरकार ने संशोधन किया है
ताकि खाद्य-उत्पादों पर लागू संग्रहण की मौजूदा बाध्यताओं को हटाया जा सके।
2:- केंद्र सरकार ने एक नया कानून (द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स
(प्रोमोशन एंड फेसिलिएशन) अध्यादेश, 2020) एफपीटीसी नाम से बनाया है जिसका मकसद कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) के
एकाधिकार को खत्म करना और हर किसी को कृषि-उत्पाद खरीदने-बेचने की अनुमति देना है
।
3:-ये एक नया कानून एफएपीएएफएस
(फार्मर(एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस अश्योरेंस
एंड
फार्म सर्विसेज आर्डिनेंस,2020) बनाया गया है,
इस
कानून के जरिये अनुबंध आधारित खेती को वैधानिकता प्रदान की गई है ताकि बड़े व्यवसायी
और कंपनियां अनुबंध के जरिये खेती-बाड़ी के विशाल भू-भाग पर ठेका आधारित खेती कर
सकें।
दरअसल ई नाम और नया कृषि विधेयक लगभग
एक ही है बस ई नाम सफल नही हुआ और कृषि विधेयक पर बवाल हो गया क्योंकि समस्या अनाज
बेचना नही है बल्कि अनाज का सही समर्थन मूल्य मिलना है सरकार के पास एफसीआई या
एपीएमसी यानी एग्रीकल्चर मार्केटिंग प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी के माध्यम से अनाज
खरीदने के पैसे नही है होते तो वो बड़े घरानों पर किसानों को निर्भर न होने देते अब
नए कृषि विधेयक के मुताबिक अब कॉन्ट्रेक्टर फार्मिंग होगी जिसमें बड़े घराने या
प्राइवेट सेक्टर बीच मे आएंगे 2 हज़ार हैक्टेयर की खेती करने वाले कंपनियां बनाएंगे
और आने वाले वक्त में इन संभावनाओ से भी इंकार नही किया जा सकता कि ये कंपनियां ही
उधारगिरी में किसानों को फंसा देंगी। किसानों को ये डर सता रहा है कि इस विधेयक से
एपीएमसी मंडियों के बाहर बिना टैक्स का भुगतान किए किसी को भी माल बेच सकते है तो
बिना भुगतान के कारोबार होगा कैसे होगा भी तो कोई मंडी तो आएगा ही नही सरकार
एमएसपी पर फसलों की खरीद बन्द कर देगी क्योंकि नए कृषि विधेयक में इस बात का कोई
जिक्र ही नही है कि फसलों की खरीद एमएसपी से नीचे के भाव पर नही होगी। नए कृषि
कानून पर किसान इसीलिए भी विश्वास नही कर पा रहे है क्योंकि पीएम किसान सम्मान
योजना में लगभग 14 करोड़ किसानों को लाभ मिलना था लेकिन 8 या 9 करोड़ किसानों
को बमुश्किल
ये लाभ मिला, एक रिपोर्ट बताती है कि 31 मार्च 2020 तक 3.4 करोड़
एमटी अनाज और 37 लाख बमम्बू और नारियल बिका जिसका कुल व्यापार एक लाख करोड़ हुआ
इसके माध्यम के डिजिटल ट्रांजेक्शन 662करोड़ हुआ जिसमें कुल 1,17,849 किसानों को
फायदा हुआ,तो सवाल खड़ा होता है कि क्या असल किसानों की संख्या ही एक लाख
के करीब है ?
किसानों
के मन में ऐसे कई प्रश्न है जैसे क्या पीएम किसान योजना खत्म होगी ?
क्या फसल बीमा योजना खत्म होगी? क्या
फर्टिलाइजर
सबसिडी खत्म होगी ? क्या पेस्टी साईड बेचने वाले करोङो छोटे
दुकानदार खत्म हो जायेगे ?
क्योंकि जब बङे बङे कोनट्रेक्ट फार्म
होगे तो ये भी खाद रसायन सीधे कम्पनी से ही लेंगे छोटे दवाई बेचने वाले रीटेलर से
तो कतई नही लेंगे।
कृषि विभाग के नियम के अनुसार
बीज खाद रसायन आदि में छूट सब्सिडीकेवल किसान को मिलती है जिससे अगर कोई फर्म या कम्पनी सरकार के पास आयेगी तो
उसे बीज खाद रसायन आदि पर कोई छूट नही दी जाती है और जब फार्मर की जगह फर्म आ
जायेगा तो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री
किसान योजना फर्टिलाइजर सब्सिडी किसे दी जाएगी ? एफसीआई
के ज़रिए सरकार का लगभग 75
हज़ार करोड़ का खर्चा अनुमानित आता है वो भी तब जब ये संस्थान सबसे खर्चीला माना जाता है । इसी प्रकार पी एम
किसान सम्मान के तहत प्रत्येक वर्ष 75000 करोङ का
खर्चा आता है और किसानो
को प्रत्येक वर्ष 65000 करोङ की
फर्टिलाइजर सब्सीडी
देते है । और इसी प्रकार लगभग 20 से 25 हजार करोङ का खर्चा फसल बीमा पर होता है जो
इस विधेयक के बाद नही
होगा।
ज्ञात
हो कि एक तरफ सरकार कांट्रैक्ट फार्मिग की बात कर रही है यानि प्राईवेट प्लेयर को लाने की बात तो वहीं
दूसरी तरफ
6000 करोङ वेयर हाउसिंग पर भी खर्च कर रही है इसे इस बार के यूनियन
बजट मे भी रखा गया है इसका सीधा और साफ मतलब है कि सरकार बड़ी कंपनियों के रास्ते
खोल रही है। इसके साथ ही अगर देश भर में कांट्रैक्ट फार्मिग लागू होगा तो देश
में बङे
बङे 2000 हैक्टेयर की खेती करने वाली कम्पनियां ही
नजर आएँगी और किसान गायब हो जाएगा ।