केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का आंदोलन हुआ उग्र, पुलिस ने अस्थाई जेल बनाने के लिए सरकार से मांगी अनुमति

देश का अन्नदाता और देश की सरकार दोनों के बीच जंग छिड़ी हुई है। केंद्र के कृषि कानूनों  के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन आज भी जारी है, साथ बड़ी संख्या में किसान दिल्ली आने की कोशिश भी जारी है।पंजाब से किसानों का काफिला दिल्ली क्या पहुंचा सरकार डरने लगी और दिल्ली में पुलिस स्टेडियम को किसानों के लिए अस्थायी जेल बनाने की कवायद तेज कर दी गयी है। पुलिस ने अस्थायी जेल के लिए सरकार से परमिशन मांगी है। दिल्ली पुलिस ने सरकार से करीब 9 स्टेडियम को अस्थायी जेल के रूप में तब्दील करने की परमिशन मांगी है, अगर दिल्ली में किसानों का प्रदर्शन उग्र हुआ तो दिल्ली पुलिस उन किसानों को इन्ही स्टेडियम में लाएगी। आपको बता दें कि शुक्रवार 27 नवंबर की सुबह पुलिस ने फिर किसानों पर आंसू गैस के गोले दागे, सिंघु बॉर्डर पर जमा हुए प्रदर्शनकारी किसानों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस का प्रयोग किया गया। प्रदर्शन कर रहे किसानों को रोकने के लिए पुलिस बॉर्डर पर मुस्तैद है, बॉर्डर को सील कर दिया गया है। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, रोड बंद किए जाने से दिल्ली की ओर जाने वाले मुसाफिरों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक पंजाब के किसानों के दिल्ली में प्रवेश करने से रोकने के लिए सिंघु बॉर्डर पर रोक दिया गया है। इस दौरान एक किसान ने कहा, "हम शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे हैं और हम इसे जारी रखेंगे, हम शांतिपूर्वक प्रदर्शन करते हुए दिल्ली में प्रवेश करेंगे। लोकतंत्र में, हर किसी को प्रदर्शन की अनुमति होनी चाहिए।"

गौरतलब है कि कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) एक्ट, 2020, कृषक (सशक्‍तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार एक्ट, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) एक्ट 2020 का किसान विरोध कर रहे हैं और इन तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं,किसान संगठनों की शिकायत है कि नए कानून से कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को होगा। किसान और किसान संगठनों को डर है कि कॉरपोरेट्स कृषि क्षेत्र से लाभ प्राप्त करने की कोशिश करेंगे, साथ ही किसान कानून का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि बाजार कीमतें आमतौर पर न्यूनतम समर्थन (एमएसपी) कीमतों से ऊपर या समान नहीं होतीं,सरकार की ओर से हर साल 23 फसलों के लिए एमएसपी घोषित होता है।

किसानों को चिंता है कि बड़े खिलाड़ी और बड़े किसान जमाखोरी का सहारा लेंगे जिससे छोटे किसानों को नुकसान होगा, जैसे कि प्याज की कीमतों में. एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी के स्वामित्व वाले अनाज बाजार, मंडियों को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है जो इन पारंपरिक बाजारों को वैकल्पिक विकल्प के रूप में कमजोर करता है। देश के कई राज्य के बिजली कर्मचारियों की तरह किसान संगठन कृषि कानूनों के अलावा बिजली बिल 2020 को लेकर भी विरोध कर रहे हैं। केंद्र सरकार के बिजली कानून 2003 की जगह लाए गए बिजली (संशोधित) बिल 2020 का विरोध किया जा रहा है।  प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि इस बिल के जरिए बिजली वितरण प्रणाली का निजीकरण किया जा रहा है। केंद्र सरकार बिजली वितरण प्रणाली को निजी हाथों में सौंपने की जल्दबाजी में है।


किसानों पर आंसू गैस छोड़ने,और ठंड में पानी की बौछार करने पर किसानों का कहना है कि खाना हमारे पास है नहला पुलिस देती है, अब तो गोली से ही वापस जाएंगे डंडे और पानी की बौछारों से नही, गोली भी सीने पर ही खाएंगे पीठ पर नही। हम कोई पाकिस्तानी नही जो ऐसे रोक जा रहा है क्या किसानों को आंदोलन करने का हक नही है हम निहत्थे है कोई हथियार भी नही है हमारे पास। आर पार की लड़ाई लड़ने को तैयार है किसानों ने कहा मांगे पूरी नही हुई तो जारी रहेगा आंदोलन।