कोरोना वैक्सीन:सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोरोना वैक्सीन की एक डोज़ होगी 225 रुपये की

विश्व्यापी कोरोना महामारी को रोकने के लिए पूरी दुनिया वैक्सीन तैयार करने में लगी है कई बड़े देशों से ऐसी खबर भी आई कि कोरोना की वैक्सीन लगभग बनकर तैयार हो चुकी है।पिछले 5 महीनों से कोरोना वायरस के संक्रमन ने पूरी दुनिया मे आतंक मचाया है तभी से कोरोना की वैक्सीन बनाने की कवायद तेज हो गयी।भारत मे भी कोरोना की वैक्सीन बनाने की लिए बड़ी बड़ी फार्मासूटिकल कम्पनियों ने कदम बढ़ाए ।भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) भी इसी कड़ी में लगी हुई है, वह वैक्सीन पर रिसर्च कर रही कंपनियों से गठजोड़ कर रही है, साथ ही इसके उत्पादन के लिए भी समझौते कर रही है, पिछले कुछ दिनों में उसने वैक्सीन बनाने को लेकर दो बड़े समझौते किए हैं।पहला समझौता अमेरिकी वैक्सीन कंपनी नोवावैक्स से किया गया है यह वैक्सीन बनाने को लेकर है, दूसरा समझौता गावी वैक्सीन अलायंस, बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से हुआ है। इसके तहत भारत और आर्थिक रूप से कमजोर देशों के लिए साल 2021 तक 10 करोड़ वैक्सीन बनाने और इन्हें डिलीवर करने पर सहमति बनी

इसके तहत गेट्स फाउंडेशन 150 मिलियन डॉलर यानी 11 अरब रुपये देगा,यह पैसा गावी वैक्सीन अलायंस को दिया जाएगा, फिर गावी इस पैसे को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को मुहैया कराएगा, इसके जरिए नोवावैक्स और एस्ट्राजेनेका कंपनियों की संभावित वैक्सीन कैंडिडेट का उत्पादन बढ़ाने में मदद की जाएगी, वैक्सीन कैंडिडेट का मतलब होता है ऐसी वैक्सीन जो अभी ट्रायल में है,क्योंकि वैक्सीन तैयार करने में काफी समय लगता है। कई सफल ट्रायल के बाद कोई वैक्सीन तैयार होती है।अगर नोवावैक्स और एस्ट्राजेनेका में से किसी की वैक्सीन कामयाब हुई और इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हरी झंडी दे दी तो इसे बाजार में उतारा जाएगा।समझौते के तहत सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कामयाब वैक्सीन की एक डोज़ को तीन डॉलर यानी लगभग 225 रुपये में मुहैया कराएगा। यह वैक्सीन भारत के साथ ही 92 और देशों में भी उपलब्ध कराई जाएगी।


इस बारे में गावी के सीईओ डॉ. सेथ बर्कले ने बताया कि कई बार यह देखा गया है कि इलाज, डायग्नोस्टिक और वैक्सीन के लिए कमजोर देश काफी पीछे रह जाते हैं,इसलिए यह समझौता किया गया है,इसके तहत भविष्य में कमजोर और गरीब देशों के लिए 100 मिलियन यानी 10 करोड़ टीके तैयार किए जाएंगे,सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भारत और बाकी गरीब देशों के लिए नोवावैक्स की कोरोना वैक्सीन कैंडिडेट के लिए भी समझौता किया है। यह समझौता 30 जुलाई को किया गया था, इससे पहले सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के लिए भी हाथ मिलाया था।इस वैक्सीन का अभी इंसानों पर ट्रायल हो रहा है, कंपनी को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने दूसरे और तीसरे फेज़ के ह्युमन ट्रायल के लिए भी अनुमति दे दी है।कोरोना की वैक्सीन बना रही अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना के बारे में खबर है कि उसकी वैक्सीन की एक डोज़ की कीमत 3700 से 4500 रुपये के बीच हो सकती है। वहीं फाइज़र कंपनी की ओर से तैयार की जा रही वैक्सीन की कीमत 3000 रुपये प्रति डोज़ बताई जा रही है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन की कीमत 1000 रुपये के करीब बताई थी, हालांकि यह सभी कीमतें अभी केवल अनुमान हैं। वैसे भी वैक्सीन की कीमत प्रत्येक देश के लिहाज़ से अलग-अलग होगी, उदाहरण के लिए मॉडर्ना की वैक्सीन की जो कीमत बताई जा रही है, वह अमेरिका के लिए है,बाकी देशों में कीमत कम हो सकती है।


एस्ट्राजेनेका, जॉनसन एंड जॉनसन और फाइज़र जैसी कंपनियों का कहना है कि वे कोरोना वैक्सीन से मुनाफा नहीं चाहती हैं, वे इसकी वैक्सीन को कम कीमत पर बेचने को तैयार हैं। हालांकि मॉडर्ना का कहना है कि वह अपनी वैक्सीन को लागत मूल्य पर नहीं बेचेगी।

अभी 160 के करीब वैक्सीन कैंडिडेट प्री क्लीनिकल या क्लीनिकल ट्रायल में हैं, इनमें से 23 क्लीनिकल ट्रायल में हैं,छह वैक्सीन कैंडिडेट ह्यूमन ट्रायल के तीसरे फेज़ में हैं। भारत में कम से कम आठ वैक्सीन पर काम चल रहा है। इनमें से दो पहला फेज़ पूरा कर चुकी हैं और दूसरे चरण में हैं।वहीं रूस 12 अगस्त को अपनी कोरोना वैक्सीन को रजिस्टर कराएगा, रूस के डिप्टी हैल्थ मिनिस्टर ओलेग ग्रिडनेव ने कहा कि अभी ट्रायल का तीसरा स्टेज चल रहा है, यह ट्रायल काफी अहम हैं।इस ट्रायल के क्लीनिकल ट्रायल 18 जून से शुरू हुए थे।