मानसून की दस्तक के चलते 1 जून से बंद हो जाएगा खनन कार्य

प्रदेश सरकार को करोड़ों रुपए का राजस्व को देने के साथ ही लाखों लोगों को रोजगार देने वाली गोला नदी सहित चारो नदियों में मानसून सत्र को देखते हुए 1जून से खनन कार्य पूर्णतया बंद हो जाएगा। इस वित्तीय वर्ष में लॉक डाउन के चलते अब तक केवल 23 लाख घन मीटर की निकासी ही हो पाई है।

आगामी मानसून सत्र को देखते हुए प्रदेश सरकार द्वारा गौला, कोसी नंधौर और दाबका नदी में खनन कार्य बंद करने के निर्देश दिए गए हैं। खनन अधिकारी रवि नेगी ने बताया कि लॉक डाउन के चलते अब तक केवल 23 लाख घन मीटर की निकासी ही हो पाई है, तीस लाख घन मीटर की परमिशन के सापेक्ष इस बार सरकार को कम राजस्व की प्राप्ति हुई है। खनन पर भी लॉक डाउन का पूरा प्रभाव पड़ा है लिहाजा मानसून सत्र को देखते हुए कम निकासी के बावजूद नदियों में खनन कार्य 1 जून से बंद करने के निर्देश दिए गए हैं। 


गौरतलब है कि विगत 24 मार्च से पूरे देश में लगे लॉक डाउन के दौरान खनन कार्य भी पूरेे 2 माह तक बंद रहा। 14 मई को लॉक डाउन में मिली ढील के दौरान खनन व्यवसाइयों एवं वाहन स्वामियों को उम्मीद थी कि गौला नदी में खनन की तिथि आगे बढ़ेगी लेकिन खनन बंद होने से उनके आगे अब रोजी-रोटी का संकट पैदा हो जाएगा।


 गौला नदी में हाड़तोड़ मेहनत कर अपना पेट भरने वाले गौला श्रमिक इस बार लॉक डाउन के चलते गोला नदी में ही फस गए सरकार के उदासीन रवैए के चलते अभी तक उक्त श्रमिकों को घर भेजने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।


मायूसी के साथ कड़वी यादें लिए श्रमिक अपने अपने घर जाने के लिए सरकार द्वारा कुछ इंतजाम करने की राह देख रहे हैं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ आदि प्रांतों से हजारों की तादात में श्रमिक अपने परिवार को 2 जून की रोटी जुटाने के लिए गोला एवं नंधोर नदियों में खनन कार्य करने यहांं आए थे।जिसमे अधिकतर श्रमिक होली पर्व पर अपने घर को चले गए परंतु कई श्रमिक गोला एवं नंदौर नदी में चल रहे खनन कार्य में जुटे रहे।परंतु इस बार अचानक पूरे विश्व मेंं फैली कोरोना संक्रमण महामारी के दौरान केंद्र सरकार द्वारा पूरे देश में लगाए गए लॉक डाउनलोड के दौरान जहां एक तरफ खनन कार्य पूरी तरह ठप पड़ गया वही कोसों दूर से आए गोला श्रमिकों के आगे पेट भरने तक का संकट भी पैदा हो गया और हाड़ तोड़ मेहनत के बल पर पैसा कमाने आए श्रमिक लोक डाउन के चलते गोला नदी में ही फंस कर रह गए।


जिनको कई सामाजिक संगठनों द्वारा भोजन पानी की व्यवस्था तो करवाई गई। परंतु आवागमन पूरी तरह से बंद होने के बाद वह अपने अपने घर नहीं लौट सकें। लॉक डाउन के दौरान मिली ढील के बाद श्रमिकोंं को उम्मीद जगी थी कि चार पैसा हाथ में होगा तो वह भी कुछ जमा पूंजी लेकर वह भी अपने घर को जा सकेंगे। परंतु मानसून सत्र को देखते हुए आगामी 1 जून से सभी नदियों में खनन कार्य पूर्ण रूप से बंद होने के बाद श्रमिकों के पास कड़वी यादों के अलावा कुछ भी नहीं है। फिलहाल कुछ भी हासिल न होने के बाद भी अब गोला श्रमिक अपने अपने घरों को जाने के लिए बेताब दिखाई दे रहे हैं।बाहरी प्रांतो के गौला श्रमिको की सुध राज्य सरकार कब लेगी यह गंभीर चिंतनीय विषय बना हुआ है।


जिस तरह से उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रवासियों को लाने का प्रयास किया जा रहा है उसी तरह से बिहार एवं छत्तीसगढ़ सरकार को भी यहां फंसे गोला श्रमिकों को अपने यहां वापस बुलाने का इंतजाम करना चाहिए फिलहाल प्रदेश सरकार द्वारा उन्हें भेजने की अभी कोई व्यवस्था नहीं की है परंतु कई वाहन स्वामियों द्वारा बसों के माध्यम से श्रमिकों को भेजने की व्यवस्था की जा रही है।