विशेष : महाबली सूर्यपुत्र कर्ण की मृत्यु का क्या है रहस्य, जानिए और पढ़िए

विशेष। दुश्शासन को जब भीम ने मारा व उसका रक्त पिया और द्रौपदी ने अपने केश उसके खून से धोये तो दुर्योधन की आँखे गुस्से से लाल हो गयी। फिर उसने आवेश में आकर कर्ण को अर्जुन को समाप्त करने का निर्देश दिया और फिर कर्ण पांडवों की सेनाओ को धराशाही करते हुए अर्जुन के आगे कूद पड़ा। फिर क्या था दोनों में भयंकर युद्ध होने लगा। युद्ध इतना भयंकर था की श्री कृष्ण को कई बार अर्जुन को सावधान करना पड़ा था क्योंकि अर्जुन कर्ण की ताकत देखकर हैरान रह गया।ये तो गनीमत थी कि अर्जुन के रथ पे हनुमान की ध्वजा लहरा रही थी जिससे वो युद्ध में बच रहा था। लेकिन इस युद्ध में हनुमान जी भी बेहद मुश्किल से अर्जुन का रथ नष्ट होने से बचा पाये और श्री कृष्ण भी कर्ण के इस युद्ध कौशल की प्रशंसा किये बिना न रह सके।


विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का दावा करने वाले अर्जुन को ऐसा लग रहा था जैसे अर्जुन सामने है और वो खुद एक आम धनुर्धर है। शाम होते होते अर्जुन की हालत ख़राब होने लगी और तब अर्जुन पर कर्ण ने ब्रह्मास्त्र चलाना चाहा, जिससे अर्जुन उसी समय मौत के घात उतर सकता था।  लेकिन तब श्रीकृष्ण ने अपनी माया से सूर्यास्त कर दिया, जिस कारन अर्जुन के प्राण बच पाए।


हालाँकि महाभारत का युद्ध आरम्भ होने से पहले ही कायदे कानून टूट चुके थे तो सूर्यास्त को कौन पूछता। फिर भी कर्ण अर्जुन को ईमानदारी से ख़त्म करना चाहता था और अपनी श्रेष्ठता साबित करना चाहता था इसलिए उसने अपना रथ अपने शिविर की तरफ मोड़ लिया।


युद्ध के सत्रहवें दिन फिर वही कहानी शुरू हुई कर्ण ने अर्जुन पे जो प्रहार किये कि वो अधमरा हो गया। इसी हालत में अर्जुन पे कर्ण ने नागपाश चलाया (जो इंद्रजीत ने राम लखन पे चलाया था) पर कृष्ण ने अपने वाहन गरुड़ की सहायता से उसका लक्ष्य मोड़ दिया और वो अर्जुन की छाती पर लगा। युद्ध में पहली बार अर्जुन अपने रथ से नीचे गिरा और अर्धमूर्छित हो गया।अगर कर्ण चाहता तो उसे उस समय भी आसानी से मार सकता था पर फिर उसने ईमानदारी दिखाई।


तब कर्ण को मिले तीनो श्राप एक साथ लगे थे, पहला श्राप गौ हत्या पर लगा कि जब वो सबसे ज्यादा निसहाय अवस्था में होगा तभी उसकी मौत होगी। दूसरा उसका रथ मिटटी में धंस गया जो कि भूमि देवी के श्राप की वजह से हुआ था और अर्जुन को रथ से नीचे गिरा देख वो अपने पहिये को निकालने रथ से उतरा पर तब तक अर्जुन अपने रथ पर चढ़ चुका था और कृष्ण के कहने पर अपना बाण धनुष पर चढ़ा चूका था तब भी कर्ण ने अपने अस्त्र चलाने चाहे पर वो परशुराम के श्राप की वजह से वो भी भूल चूका था। तब कर्ण के युद्ध के पूरे कायदो से युद्ध लड़ने के बदले अर्जुन ने उसे रथ से नीचे खड़े अपने रथ के पहिये को निकालने के प्रयास में निशस्त्र अवस्था में ही मार डाला।


कर्ण ने परशुराम से झूठ कहके कि वह ब्राह्मण है, दीक्षा ली थी। जब परशुराम को सत्य पता चला तो उन्होंने उसे समय पड़ने पर सारी विद्या भूल जाने का श्राप दिया था। जवानी में कर्ण के हाथो अनजाने में एक गाय और बैल की मौत हो गई थी। जिसके बदले सफाई सुनने से पहले ही ब्राह्मण ने उसे श्राप दे दिया था कि  जब तू सबसे ज्यादा असहाय होगा तभी तेरी मृत्यु होगी और वैसा ही हुआ। इतना ही नहीं एक छोटी बच्ची की सहायता करते हुए कर्ण ने मट्टी को निचोया था, इस पर भू-देवी ने उसे रथ को युद्ध में मौके पर फंसने का श्राप दिया था। बस इन्ही श्रापो की वजह से परम प्रतापी कर्ण का अंत हुआ था लेकिन श्री कृष्ण ने कर्ण की देह को कृष्ण ने मुखाग्नि दी थी।