बुढ़ापे के दंश को दर्शाती फ़िल्म "पूनम" जल्द होगी रिलीज़

एक दौर था जब लोग परिवार,समाज और लोक लाज के डर से अपने प्यार को कुर्बान कर दिया करते थे,फिर होती थी एक ऐसी शुरुआत जहां प्यार, रिश्ते- नाते सब शादी के बाद बना करते थे,और परिवार के आगे बढ़ने की कवायद भी शुरू हो जाती थी। परिवार आगे बढ़ता है और बच्चों को लाड़ प्यार से पाल पोसकर मा बाप अपने बुढ़ापे का सहारा बनाते है लेकिन क्या वो वास्तव में सहारा बनते हैं? बच्चों का होना ,फिर उनका बड़ा होना और अपने माँ बाप की उपेक्षा करना समाज मे अक्सर देखा गया गया है, इसी सामाजिक मुद्दे के दंश को समझते हुए अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता नैनीताल निवासी संजय सनवाल के निर्देशन में पूनम नाम की फ़िल्म बनाई जा रही है, जिसमे 60-70 के दशक के ऐसे दंपति की कहानी दिखाई गई है ,जो अपने लाड़ प्यार से पाले गए बच्चों के हाथों खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं, बुढ़ापे का सहारा बनने की जगह वही बच्चे अपने माँ बाप को तनहा अकेला छोड़ देते हैं।

छोटा पर्दा हो या बड़ा पर्दा हमेशा टीवी पर सिर्फ मनोरंजन के कार्यक्रम ही नही दिखाए जाते, बल्कि समाज और समाज से जुड़े ऐसे पहलुओं पर भी फिल्म और नाटक बनाये गए है जो समाज का आईना साबित हुए हैं, संजय सनवाल ने भी "पूनम" के ज़रिए बुढ़ापे के दंश को दिखाने की कोशिश की है ,"पूनम" की शूटिंग नैनीताल के कई खूबसूरत इलाको में की गई है। इस फ़िल्म में मुख्य किरदार के रूप में जानी मानी अभिनेत्री मीता वशिष्ठ और दूरदर्शन के बहुचर्चित नाटक व्योमकेश बख्शी के मुख्य किरदार रजित कपूर ने काम किया है।इस फ़िल्म का शुभारंभ मुंबई में कुछ ही दिन पहले मुंबई के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के द्वारा किया गया था।


इस फ़िल्म की निर्मात्री शिल्पी दास हैं, फ़िल्म में संगीत मुंबई के विदित तनवर द्वारा दिया गया है,नैनीताल के कई कलाकारों को भी इस फ़िल्म में काम करने का सुनहरा अवसर मिला है ,मदन मेहरा जो कि नैनीताल के थिएटर आर्टिस्ट है उन्हें भी फ़िल्म में रोल दिया गया है। पूनम फ़िल्म के द्वारा आज की पीढ़ी को संदेश दिया गया है कि अपने माँ बाप को उनके बुढापे में अकेला न छोड़ें, उन्हें एकांकी जीवन जीने पर मजबूर न करें। फ़िल्म की शूटिंग लगभग पूरी हो चुकी है जल्द ही ये फ़िल्म दर्शकों के सामने होगी।