नैनीताल:दो पद एक साथ संभाल रहे त्रिशंकु अधिकारी! न इधर का काम हो रहा न उधर का काम,दबा कर हो रहा अवैध निर्माण!

Nainital: Illegal construction continues, LDA secretary is posted on two posts in Nainital and Haldwani, Uttarakhand government lacks officers?

सरोवर नगरी नैनीताल में अंधेर नगरी चौपट राजा वाली कहावत इनदिनों प्रत्यक्ष रूप से देखी जा सकती है। खूबसूरत सरोवर नगरी धीरे धीरे अतिक्रमण की मार अवैध निर्माण कार्य की भेंट चढ़ती जा रही है और इसका पूरा श्रेय यहां की लापरवाह जनता और भ्रष्ट अधिकारियों को जाता है।


जब कायदे-कानून बनाने वाले चुनिंदा नुमाइंदे और उन्हें लागू करने के लिए जिम्मेदार सरकारी मशीनरी खुद ही कायदे-कानूनों को अगूंठा दिखाने पर आमादा हो तो आम लोगों से नियम-कानूनों के पालन करने की उम्मीद बेमानी हो जाती है। नतीजे में समाज के भीतर कानून का इक़बाल खतरे में पड़ जाता है। 'जिसकी लाठी, उसकी भैंस' वाली कहावत सच होने लगती है। 

ऐसा क्यो कह रहे है आइए बताते है आपको।

 

दरअसल आज नैनीताल नगर का जो हाल हुआ है,उसके लिए निर्विवाद तौर पर केवल यहां अवैध तरीके से घर बनाने वाले ही नहीं,बल्कि शासन - प्रशासन भी बराबर का जिम्मेदार हैं । नैनीताल के अस्तित्व को बचाने में लगे स्थानीय जागरूक लोगो के अनुसार नगर को व्यवस्थित करने के नाम पर 1984 में की गई झील विकास प्राधिकरण की व्यवस्था ने नैनीताल को पहले के मुकाबले कहीं अधिक बर्बाद करने का काम किया है। यहां झील विकास प्राधिकरण के सचिव और हल्द्वानी नगर निगम आयुक्त दोनों एक ही अधिकारी है पीसीएस पंकज उपाध्याय।

नैनीताल से हल्द्वानी की दूरी 40 किमी के करीब है ऐसे में दो जगह दो पदों की ज़िम्मेदारी एक ही अधिकारी को देना इन दोनों ही शहरों के लिए नाइंसाफी है। पीसीएस अधिकारी पंकज उपाध्याय को जून 2021 में सचिव जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण नैनीताल के अतिरिक्त प्रभार के स्थान पर मूल तैनाती दी गई थी वही सितंबर 2021 हल्द्वानी नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय को बनाया। अभी तक नैनीताल जिला विकास प्राधिकरण सचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे पंकज उपाध्याय ने पूर्व नगर आयुक्त सीएस मर्तोलिया की जगह ली थी हल्द्वानी के नौवे आयुक्त के रूप में भी पंकज उपाध्याय दूसरे स्थायी नगर आयुक्त नियुक्त किये गए।

 

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उत्तराखंड सरकार के पास पीसीएस अधिकारियों की कोई कमी है?अगर नही तो पंकज उपाध्याय को दो शहरों में बड़े पदों पर तैनात किया गया है जिसके कारण उनकी अनुपस्थिति में नैनीताल जिला मुख्यालय में अवैध निर्माण जोरो शोरो पर चलता रहता है। जब तक शिकायत प्राधिकरण के दफ्तर पहुंचती है तब तक निर्माण कार्य आधा कम्प्लीट हो जाता है,इसके बाद प्राधिकरण सचिव क्योंकि हल्द्वानी नगर निगम आयुक्त है और मंगलवार को ही नैनीताल प्राधिकरण कार्यालय आते है तो उनके सामने शिकायत भी देर से पहुंचती है। कभी कभी तो पंकज उपाध्याय मंगलवार को भी नही आते और डिजिटाइजेशन के माध्यम से ही कार्य करते है यानी लॉकडाउन भले ही खत्म हो गया हो लेकिन नैनीताल प्राधिकरण में आज भी अधिकारी होने के बावजूद कार्य ऑनलाइन चल रहे है।

प्राधिकरण पहुंचे कुछ स्थानीय लोगो ने बताया कि प्राधिकरण सचिव पंकज उपाध्याय ज़्यादातर हल्द्वानी ही रहते है यहां कभी कभी ही आते है। उनके यहां आने का निश्चित दिन मंगलवार है लेकिन पिछले दो मंगलवार से वो नही आये जिसकी वजह से आमजन को खासी दिक्कतें हो रही है। उनके साईंन भी डिजिटल हो रहे हैं जिसके लिए भी कई कई दिन इंतज़ार करना पड़ रहा है

उधर हल्द्वानी में भी विकास कार्यों को लेकर बजट का रोना रोने वाली नगर निगम के ये अधिकारी कर वसूली में फिसड्डी साबित हो रहे हैं। कर वसूलने के दो मुख्य स्रोत भूमि और दुकान है जो नगर निगम के लिए चुनौती बन हुए है।


नैनीताल की हालत की तुलना इनदिनों जोशीमठ के हालातों से की जा रही है क्योंकि यहां भी धड़ल्ले से अवैध निर्माण हुए अब तक हो रहे है,जिनकी वजह से सड़के धंसने लगी है नैनी रिट्रीट के पास बनी पार्किंग इसका ताजा उदाहरण है प्राधिकरण ने पिछले साल इस पार्किंग को सील बन्द किया फिर ध्वस्तीकरण के आदेश जारी किए लेकिन फिर भी यहां पूरी पार्किंग बन गयी पार्किंग के पास ही मेन रोड पर दरारें आने लगी जो बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। और ये सब प्राधिकरण की ढील की वजह से हुआ।

जब कायदे-कानून बनाने वाले चुनिंदा नुमाइंदे और उन्हें लागू करने के लिए जिम्मेदार सरकारी मशीनरी खुद ही कायदे-कानूनों को अगूंठा दिखाने पर आमादा हो तो आम लोगों से नियम-कानूनों के पालन करने की उम्मीद बेमानी हो जाती है। नतीजे में समाज के भीतर कानून का इक़बाल खतरे में पड़ जाता है। 'जिसकी लाठी, उसकी भैंस' वाली कहावत सच होने लगती है।


नैनीताल बचाने के लिए यहाँ लाये गए प्राधिकरण के हाथों मानो कोई खजाना हाथ लग गया हो क्योंकि प्राधिकरण के लिए नैनीताल कामधेनु गाय या पारस पत्थर की तरह है। प्रतिबंधित क्षेत्रों में अवैध निर्माण बिना प्राधिकरण की नजरों से बचे हो जाना मुमकिन ही नही,दूसरा जिस अवैध निर्माण पर सील लगा दी हो बाद में उसी सील लगे निर्माण का पूरा हो जाना किसकी शह पर होता होगा ये कहने की भी ज़रूरत नही है। 


नैनीताल में प्राधिकरण पर ये आरोप खुल्लमखुल्ला लगाए गए,जब सूखाताल में अवैध निर्माण को गिराने उनकी टीम वहां पहुंची थी,उसकी वीडियो भी वायरल हुई थी जिसमे प्राधिकरण सचिव पंकज उपाध्याय एक व्यक्ति से इन आरोपो पर चिल्ला रहे थे। जबकि प्राधिकरण की ओर से नैनीताल में बढ़ते अवैध निर्माण खत्म करने के लिए कोई प्रयास नहीं किये गए,भारी निर्माण पर सील लगाने से पहाड़ियों पर दबाव कम नही होता जब तक उस निर्माण को ध्वस्त न किया जाए और प्राधिकरण तथा शासन - प्रशासन की उदासीनता और ध्वस्तीकरण के आदेश के बाद भी निर्माण कार्य चालू रहना प्राधिकरण के आला अधिकारियों पर ही सवाल खड़े करता है। 
नैनीताल में अनाधिकृत तौर पर वह सब कुछ आज तक हो रहा है,जिसे प्राधिकरण ने नामंजूरी दी थी। दूसरी ओर आवासीय घरों के नवनिर्माण क्या मरम्मत की भी बेहद कठिन की गई प्रक्रिया का परिणाम रहा कि लोग चोरी - छुपे , रात - रात में बेहद कच्चे घरों का निर्माण करते है,और ये निर्माण कार्य प्राधिकरण के होने पर सवाल खड़े करते है।