नैनीताल: कभी नैनीताल में रिक्शा का किराया हुआ करता था 2 आना प्रति व्यक्ति! अब नैनीताल की सड़को पर नही देंगी दिखाई, जानिए नैनीताल में चलने वाली रिक्शा के कुछ अनकहे किस्से

Nital: Once upon a time the rickshaw fare in Nainital used to be 2 annas per person! Now Nainital will not be seen on the roads, know some untold stories of Nainital rickshaws

नैनीताल के इतिहास के बारे में तो आपने बहुत पढा होगा आज नैनीताल में चलने वाली रिक्शा का वो इतिहास हम आपको बताएंगे जब एक व्यक्ति का किराया मात्र दो आना हुआ करता था। नैनीताल के प्रसिद्ध पर्यावरणविद और जाने माने इतिहासकार प्रो.अजय रावत से  टेलीफोनिकली लिए एक साक्षात्कार में उन्होंने नैनीताल के रिक्शा स्टैंड के अनछुए पहलुओं के बारे में बताया कि 1850 के बाद नैनीताल का नगरीकरण हुआ ,और नैनीताल एक हेल्थ रिसोर्ट के रूप में विकसित हुआ।

1857 फर्स्ट वॉर फ़ॉर इंडिपेंडेंस का प्रभाव यहां नही पड़ा,लेकिन तब बरेली के कमिश्नर,आसपास के इलाको से और रामपुर के अंग्रेजो ने नैनीताल में शरण ली एक साल तक रहे।1857 के दौरान नैनीताल में अल्मोड़ा के ठेकेदार लाल मोती राम साह ब्लू आई ऑफ द ब्रिटिश हुआ करते थे,उन्होंने नगरीकरण के दौरान 30,000 की तत्कालीन पॉपुलर कमिश्नर हेनरी रैम जे आर्थिक सहायता दी थी,ये भी कहा जा सकता है कि एक साल तक लोकल लोगो ने ब्रिटिशों का खर्चा उठाया,1957 के बाद ब्रिटिश सरकार ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए नैनीताल सबसे ज्यादा एजुकेशन के लिहाज से सुरक्षित जगह बन गयी,उसके बाद उन्होंने नैनीताल में एजुकेशन हब बनाया,1850 में हल्द्वानी मोटर रुट से जुड़ चुका था,1882 में हल्द्वानी तक रेलवे लाइन जुड़ चुकी थी जिसकी वजह से टूरिस्ट का आना जाना ज़्यादा बढ़ गया,हालांकि तब टूरिज्म इतना ज़्यादा नही बढ़ा जितना बढ़ना चाहिए था पर 1915 में टूरिज्म बढ़ने लगा जब काठगोदाम से नैनीताल का मार्ग बना। नैनीताल में पानी की लाइन बिछाई गई, 1922 में नैनीताल में बिजली आयी ,तब टैक्सी भी चलने लगी।1900 के बाद टूरिस्ट रिसोर्ट बन गया ,जिसका श्रेय जिम कॉर्बेट की माता मैरी जिम कॉर्बेट  को जाता है जो उस वक्त यहां होटल अनुबंध पर लेती थी,और टूरिस्ट को एक एक दो दो महीने पर किराए पर देती थी। 

जब नैनीताल का नगरीकरण शुरू हो रहा था,तब (1850 से 1942 तक) हाथ से खींचने वाली रिक्शा चलती थी,दो लोग आगे से रिक्शा को खींचते थे दो लोग पीछे से विशेषकर चढ़ाई में चढ़ने के लिए रिक्शा को धक्का लगाते थे जैसे कोई पालखी हो।उस दौरान कलकत्ता और चीन में भी ऐसी ही रिक्शा प्रचलित थी। 

नैनीताल में हाथ से खींचने वाली रिक्शा की सीट पायदान सब आरामदायक हुआ करते थे,तत्कालीन रिक्शा में बारिश से बचने के लिए छतरी नुमा हुड लगे रहते थे,हाथ से खींचने वाली रिक्शा के अलावा उस वक्त डांडी और घोड़े काफी प्रचलित हुआ करते थे। मॉल रोड में बिना परमिशन के कोई रिक्शा या घोड़े इत्यादि नही चल सकते थे,उसके लिए लाइसेंस बनवाने पड़ता था। 1942 में नैनीताल में साईकल रिक्शा पहली बार आयी,भारत छोड़ी आंदोलन का बड़ा गहरा प्रभाव पड़ चुका था,नैनीताल ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी तब नैनीताल ही सभी गतिविधियों का गढ़ हुआ करता था,उस दौरान वीरभट्टी में बिजली पैदा करने के लिए पावर हाउस भी बनाया गया था, इसलिए ज़रूरत को देखते हुए साईकल रिक्शा की शुरुआत हुई।तब मल्लीताल और तल्लीताल में रिक्शा स्टैंड बने,1942 में रिक्शा का क्या किराया हुआ करता था इस बारे में नगर पालिका नैनीताल के पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष ने बताया कि 22 जनवरी 1942 में नैनीताल नगर पालिका के नियमानुसार एक रिक्शा के लिए 25 रुपये प्रतिवर्ष लाइसेंस फीस लागू की गई थी,और 12 पैसे प्रति सवारी और 25 पैसे दो सवारियों के लिए जाते थे।इतना ही नही रिक्शा चालकों के लिए एक निश्चित ड्रेस कोड भी लागू किया गया था और हाथ की बाजू में एक पीतल का पट्टा बांधना अनिवार्य था जिस पर रिक्शे का लाइसेंस नम्बर इंगित रहता था। इसके अलावा रिक्शा चालक को सख्त निर्देश थे कि शाम होने के बाद वो रिक्शा के आगे लैंप जलाए रखे ताकि दूर से ही रिक्शा दिखाई दे सके। यदि कोई रिक्शा चालक इस नियम का पालन नही करता था तो रिक्शा का लाइसेंस कैंसिल कर दिया जाता था।

 

वही इतिहासकार प्रो अजय रावत कहते है कि 1966 में यानि आज़ाद भारत मे प्रति व्यक्ति रिक्शे का किराया 2 आना हुआ करता था,यानि दो लोगो को मल्लीताल से तल्लीताल जाने के लिए चार आना किराया देना पड़ता था। और तब 16 आने में 1 रुपया हुआ करता था और 1 आने में 4 पैसा। फिर धीरे धीरे वक्त के साथ किराया बढ़ता गया और आज 20 रुपये दो लोगो के लिए किराया लिया जाता है अब ई रिक्शा के संचालित किए जाने पर प्रति व्यक्ति दस रुपये सवारी ली जा रही है।